होलिका दहन
फाल्गुन माह की पूर्णिमा को होलिका दहन मनाया जाता है और उसके अगले दिन यानी चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को रंगों की होली खेली जाती है। इस वर्ष होलिका दहन 7 मार्च को होगा। आइए, हम होलिका दहन के शुभ मुहूर्त और पूजन विधि के बारे में विस्तार से जानते हैं।
होलिका दहन होली के पूर्व संध्या को आते हैं। यह हिन्दू धर्म के एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। होलिका दहन का इतिहास पौराणिक कथा से जुड़ा हुआ है। हमारे पौराणिक ग्रंथों में लिखा है कि राजा हिरण्यकश्यप ने अपनी भक्त प्रहलाद को भगवान विष्णु की पूजा करने से रोकने की कोशिश की। परंतु प्रहलाद ने अपने पिता के अनुशासन में नहीं माना और वे भगवान विष्णु के प्रति अपनी श्रद्धा बनाये रखने के लिए निरंतर प्रयत्न करते रहे।
इससे राजा हिरण्यकश्यप को बहुत नाराजगी हुई और उन्होंने अपनी बहन होलिका से सहायता मांगी। होलिका को एक वरदान मिला था जिसके अनुसार वह आग में जलने से बच सकती थी। होलिका ने उस वरदान का इस्तेमाल करके प्रहलाद को गोद में लेकर आग में डाल दिया। परन्तु भगवान की कृपा से प्रहलाद को कुछ नहीं हुआ और होलिका आग में जलकर मर गई। इस तरह होलिका दहन का त्योहार हो गया।
होलिका दहन : शुभ मुहूर्त
फाल्गुन मास पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 6 मार्च 2023 को शाम 4 बजकर 17 मिनट से.
फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि समाप्त: 7 मार्च को 06:09 बजे।
होलिका दहन: 7 मार्च 2023 की शाम 6:24 से 8:51 तक
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होलिका दहन: सामग्री
पूजा करते समय कुछ विशेष चीजों की उपस्थिति न हो, तो पूजा अधूरी मानी जाती है। इसलिए पूजा करने से पहले इन सामग्रियों की तैयारी करना अत्यंत आवश्यक है। होलिका दहन की पूजा के लिए एक कटोरी पानी, गोबर के उपलों से बनी माला, रोली, अक्षत, अगरबत्ती, फल, फूल, मिठाई, कलावा, हल्दी का टुकड़ा, मूंग दाल, बताशा, गुलाल पाउडर, नारियल साबुत, अनाज आदि सामग्री की आवश्यकता होती है।
इन सभी सामग्रियों को सही ढंग से तैयार करना अत्यंत आवश्यक है ताकि पूजा समय कोई भी त्रुटि न हो और पूजा अधिक संगीतमय हो सके।
होलिका दहन: नियम
पूजन के लिए झाड़ या सूखी लकड़ियां इस्तेमाल की जाती हैं। आम, वट और पीपल की लकड़ी कभी भी इस्तेमाल नहीं की जानी चाहिए। इसका कारण होता है कि फाल्गुन महीने में इन तीन पेड़ों की नई कोपलें निकलती हैं, इसलिए इनका जलाना वर्जित होता है। इससे बचने के लिए आप गूलर या अरंड के पेड़ की लकड़ी का उपयोग कर सकते हैं।
होलिका दहन: पूजन विधि
पहले होलिका माई की विधिवत पूजा का रिवाज होता है, जिसके बिना होलिका दहन अधूरा माना जाता है। इस दिन सूर्योदय से पहले उठें और स्नान करके साफ-सुथरे वस्त्र पहनें। दोपहर या शाम को सूर्यास्त से पहले होलिका दहन के स्थान पर पूजा की थाल लेकर जाएँ। वहाँ पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएँ।
पहले होलिका को उपले से बनी माला अर्पित करें। फिर रोली, अक्षत, फल, फूल, माला, हल्दी, मूंग, गुड़, गुलाल, रंग, सतनाजा, गेहूं की बालियां, गन्ना और चना आदि को चढ़ाएँ।
इसके बाद होलिका पर एक कलावा बांधते हुए 5 या 7 बार परिक्रमा करें। अंत में जल चढ़ाएं और होलिका माई से सुख-संपन्नता की प्रार्थना करें।
जौ या अक्षत को होलिका दहन के समय अग्नि में डालना अत्यधिक आवश्यक होता है। लोग होलिका के चारों ओर परिक्रमा करते हैं। इसके अलावा, नई फसल को चढ़ाया जाता है और उसे भुना जाता है।
भुने हुए अनाज को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। शास्त्रों में इसे बहुत ही शुभ माना जाता है।