स्वयं से एक वादा: मेघा की कॉफी डेट

Megha ki coffee date

शाम के पांच बजे का समय था जब मेघा को अचानक याद आया कि आज वीरवार है और उसने खुद से एक वादा किया था। उसके चेहरे पर एक न संभाल पाने वाली मुस्कान फैल गई, और वह फुर्ती से अपने आप को संभालते हुए तैयार होने लगी क्योंकि ओह, शिवम का गणित का होमवर्क तो उसने पहले ही पूरा कर रखा था। उसे तुरंत अध्ययन कक्ष में रख कर, वह अपनी बेटी सिया को उठाने के लिए उसके कमरे की ओर चल पड़ी, क्योंकि उसे दोपहर के आराम के बाद अपनी कक्षाओं के लिए भी जाना था।

इस आपाधापी में, रात के खाने की एक योजना भी बनानी थी, इसलिए मेघा जल्दी से फ्रिज की ओर बढ़ी। उसने सब्जियों को किचन के प्लेटफॉर्म पर रख दिया ताकि उसकी अनुपस्थिति में उसकी नौकरानी भी अपना काम शुरू कर सके। इन सभी तैयारियों के बाद, मेघा ने फ्रिज पर अपने पति विकास के लिए एक छोटा संदेश छोड़ा, जिसमें लिखा था, ‘‘तो फिर जल्दी ही मिलते हैं, कॉफी डेट के बाद। तुम्हारी मेघा,’’

अब समय था 5:20 का, और वह खुद को संवारने में व्यस्त हो गई। वास्तव में, यह सोचना कितना सुखद था कि सप्ताह के बीच में उसे खुद को संवारने का अवसर मिल रहा था, जो किसी उपलब्धि से कम नहीं था। घर, पति, और बच्चों के साथ उनकी जरूरतों का ध्यान रखते हुए, मेघा को कभी यह एहसास ही नहीं हुआ कि वह खुद कौन है और उसके जीवन का उद्देश्य क्या है।

बढ़ती हुई जिम्मेदारियों के बीच, मेघा खुद को खोती और भूलती जा रही थी। शादी के बाद के वर्षों में, उसे कभी यह अहसास नहीं हुआ कि वह एक स्वतंत्र व्यक्ति है, जिसकी अपनी सोच और इच्छाएँ हैं।

फिर एक दिन, रीना के घर पर आयोजित एक सामाजिक समारोह में, एक विषय पर चर्चा करते समय मेघा का धैर्य टूट गया, ‘‘क्या आत्म-प्रेम स्वार्थपरता है?’’

उसने सोचा कि महिलाएँ पीढ़ी-दर-पीढ़ी इस प्रश्न से क्यों जूझती रही हैं। अंत में, उसने फैसला किया कि वह सप्ताह में एक बार अपने लिए कुछ ऐसा कार्य करेगी, जिससे उसका मन प्रसन्न होता है। और आज की कॉफी डेट उस दिशा में उसका पहला कदम था।

अपनी पसंदीदा लेखिकाओं, सुधा मूर्ति और अरुंधति रॉय से प्रेरित होकर, मेघा ने मन ही मन संकल्प किया कि वह सिटी सेंटर में स्थित अपने पसंदीदा कैफे में जाकर एक कप कॉफी के साथ अपने आगामी जीवन की योजना बनाएगी। आज, वहां बैठकर, उसने आने-जाने वाले लोगों की गतिविधियों, बच्चों की मासूम बातचीत, वयस्कों के चेहरे पर छाई चिंता और आत्मविश्वास को देखा और इन सबको बिना किसी हस्तक्षेप के दिलचस्पी से देखते हुए अपनी सोच में उतारा।

उसने स्वीकार किया कि खुद की उपेक्षा करके उसने अपने साथ बहुत बड़ा अन्याय किया है। खुद से प्रेम करना, यद्यपि इसे स्वार्थपरता माना जा सकता है, आत्मकल्याण और स्वाभिमान के विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है।

कॉफी के प्याले से उठती सुगंधित भाप के साथ, मेघा का वह भ्रम भी दूर हो गया कि वह सभी को हमेशा खुश रख सकती है और उसे यह भी समझ में आ गया कि उसकी खुद की खुशी किसी और पर निर्भर नहीं है। इस प्रकार के आत्मविमर्श और उहापोह में डूबे हुए, उसने अपने आस-पास के जीवन को और अधिक गहराई से देखना और समझना शुरू किया।

सात बजे, एक ताजा उत्साह और मीठी मुस्कान के साथ, और पृष्ठभूमि में बजते हुए उसके पसंदीदा गीत ‘खुशी का पल…’ पर थिरकते हुए, मेघा घर की ओर लौट पड़ी। उसे यह एहसास हुआ कि कॉफी डेट का यह निर्णय न केवल महत्वपूर्ण था बल्कि उसे जीवन के प्रति एक नई दृष्टि भी प्रदान कर गया था।

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